Ab cm Ashok ghloot ko kamjoor savit Karne ki saajish ho rahi hai........


तो क्या अब अशोक गहलोत को कमजोर मुख्यमंत्री साबित करने की साजिश हो रही है? डिप्टी सीएम सचिन पायलट से प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छीनने से जुड़ा है मामला। 
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2 सितम्बर को राजस्थान के प्रमुख समाचार पत्र भास्कर और पत्रिका में अलग अलग स्टोरी प्रकाशित हुई। दोनों स्टोरी से प्रतीत होता है कि अशोक गहलोत को कमजोर मुख्यमंत्री साबित करने की राजनीतिक साजिश हो रही है। भास्कर की स्टोरी में बताया है कि गत आठ माह में सरकार ने 85 बड़े फैसले किए, लेकिन मात्र 29 फैसले ही केबिनेट की बैठक में हुए। यानि 56 फैसले मंत्रिमंडल की बैठक के बगैर ही सर्कूलेशन पद्धति से हुए। सर्कूलेशन पद्धति में मुख्यमंत्री और एक अन्य मंत्री की मंजूरी के बाद ही मंत्रिमंडल की मंजूरी मान ली जाती है। कोई भी सरकार सर्कूलेशन पद्धति को तब अपनाती है, जब मंत्रिमंडल की बैठक संभव नहीं हो। यानि आपात स्थिति में राजस्थान में तो इन दिनों कोई आपात स्थिति नहीं है तो फिर सरकार के अधिकांश फैसले सर्र्कूलेशन पद्धति से क्यों मंजूर हो रहे हैं? क्या अशोक गहलोत अपने मंत्रिमंडल की बैठक बुलाने में भी समर्थ नहीं है? दूसरी खबर पत्रिका की है। इस खबर में बताया गया है कि मुख्यमंत्री गहलोत ने सभी मंत्रियों को अपने प्रचार वाले जिलों में दौरान करने के निर्देश दिए थे। लेकिन 23 में से 16 मंत्रियों ने मुख्यमंत्री के आदेश  की परवाह नहीं की। यानि 16 मंत्री अपने प्रचार वाले जिलों में नहीं गए। इस खबर से भी प्रतीत होता है कि गहलोत की अपने मंत्रियों पर पकड़ नहीं है। राजनीति में सब जानते हैं कि ऐसी खबरें कब और किस उद्देश्य से प्लांट की जाती है। 30 अगस्त को राजस्थान के प्रभारी महासचिव अविनाश पांडे ने दिल्ली में कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी से मुलाकात की थी। इस मुलाकात के बाद से ही सचिन पायलट से प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष पद छीनने की खबरें चल रही थी। खुद पांडे ने भी माना कि प्रदेशाध्यक्ष के पद को लेकर श्रीमती गांधी से बात हुई है। पायलट सरकार में डिप्टी सीएम भी हैं, ऐसे एक व्यक्ति एक पद की मांग उठाई गई। अब जब सचिन पायलट पर एक व्यक्ति एक पद का नियम लागू किया जाएगा तो मीडिया में अशोक गहलोत कमजोर मुख्यमंत्री साबित करने वाली खबरें तो आएंगी ही। पायलट के समर्थक तो मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नजर लगाए बैठे हैं। यह तो अच्छी बात है कि पायलट ने गहलोत की सरकार में डिप्टी सीएम बनना स्वीकार कर लिया, नहीं तो राजस्थान में गहलोत का तीसरी बार सीएम बनना संभव नहीं था। सब जानते हैं कि सचिन पायलट के दखल की वजह से ही सरकार के फैसले सर्कूलेशन पद्धति से करवाए जा रहे हैं। यदि प्रस्तावों पर विचार हो तो केबिनेट की बैठक में विवाद हो सकता है। विवाद को टालने के लिए ही सीएम गहलोत सर्कूलेशन का सहारा ले रहे हैं। इसी प्रकार मुख्यमंत्री के आदेश के बाद भी मंत्री यदि जिलों का दौरा नहीं कर रहे हैं तो इसका जवाब पायलट ही दे सकते हैं। गहलोत और पायलट सार्वजनिक मंचों से भले ही एकता दिखाएं, लेकिन दोनों के बीच मन मुटाव अब जगजाहिर है। खींचतान के चलते ही राजनीति नियुक्तियां भी नहीं हो रही है। 


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