भारतवर्ष के सभी आयोग बन चुके हैं भ्रष्टाचारियों के शरण स्थल ?

जय यादव की कलम से -


भारतवर्ष के सभी आयोग बन चुके हैं भ्रष्टाचारियों के शरण स्थल !!!  तीनों तंत्र मिलकर कर रहे हैं भ्रष्टाचारियों का समर्थन!!! जी हां, बिल्कुल! डंके की चोट पर सही मायने में तो उत्तर प्रदेश का राज्य सूचना आयोग तो भ्रष्टाचारियों का गढ़ बन ही चुका है। इसके अलावा और भी जितने आयोग प्रतिस्थापित किए गए  हैं वे सबके सब वर्तमान समय में सत्ताधारी पार्टियों के भ्रष्टाचारियों के बचाव पक्ष में खुलेआम बेशर्मी का जामा पहनकर उन्हें संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर भारत की कथित अधिकांश न्यायपालिकाएं भी इन्हीं भ्रष्टाचारियों के पक्ष में सत्ताधारी पार्टियों के भ्रष्टाचारियों को ऐन-केन-प्रकारेन अनुचित लाभ पहुंचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते नजर आ रही हैं। रही सही कसर भारतीय लोकतंत्र के चौथे स्तम्भों के रूप में खड़े अधिकांश दलाल मीडिया घराने पूरी करते हुए जिस तरह से अपनी संदिग्ध भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं वह भी अपने आप में काबिलेतारीफ है। कुल मिलाकर भारतवर्ष भ्रष्टाचारियों के दल-दल में बुरी तरह से फंस चुका है, ऐसे में जो क्रांतिकारी इन भ्रष्टाचारियों से पंगा लेंगे या लेने की सोचेंगे भी तो निसंदेह यहां के सभी तंत्र एकमत होकर " वर्दी वाले गुंडों " सरीखों की कलम के सहारे ऐसी व्यूहरचना रच डालेंगे कि बस पूछिए मत! अन्त में इन्हीं आतंकी सरीखे वर्दी वाले गुंडों की कलम का संज्ञान लेती है हमारे देश की कथित न्यायपालिकाओं में अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर बैठे कथित न्यायमूर्ति जो कि शायद अपने विवेक का जरा सा भी इस्तेमाल करने में अपनी तौहीन समझते होंगे , ऐसा मुझे अहसास होता है। इनकी जरा सी चूक ही जहां एक ओर भ्रष्टाचारियों के हौसलों को बुलंदियों पर पहुंचाने का काम कर रही है तो वहीं दूसरी ओर क्रांतिकारियों के बुलंद हौसलों को कहीं न कहीं परास्त करने का भी काम कर रही है। आज इस देश में जिस तरह से साजिशन तीनों तंत्र मिलकर अधिकांश वर्दी वाले गुंडों की कलम को भ्रष्टाचारियों से पंगा लेने वाले क्रांतिकारियों के विरूद्ध चलवाने में लगे हैं और जिसमें काफी हद तक भ्रष्टाचारियों को सफलता भी मिलती दिखाई दे रही है। ऐसे में मुझे ऐसा आभास होता है कि देश की कथित अधिकांश न्यायपालिकाएं भी बिना कुछ सोंचे-समझे ऐसे वर्दी वाले गुंडों की कलम पर अंधविश्वास जताते हुए राष्ट्रहित में अपनी जान की परवाह किये बगैर जनहित के कामों को बाखूबी अंजाम देने वाले ऐसे क्रांतिकारियों को सीधे जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने में भी अपने को पीछे नहीं रख रहीं हैं । देश और खासकर उत्तर प्रदेश की संवैधानिक संस्थाओं में कामिल-काबिज बनकर बैठे महानुभावों !हो सके तो अपने कीमती वक्त में से धोड़ा सा वक्त इस गंभीर मुद्दे का संज्ञान लेने के वास्ते भी निकाल लीजियेगा साथ ही साथ इसपर गंभीरतापूर्वक सोंचिये-विचारियेगा फिर अपने विवेकानुसार बताईयेगा कि जय यादव की कलम में कितना झूठ भरा है और कितना....... 


आगे आप खुद ही समझदार हैं!!! 


( वैसे ये जय यादव की अपनी विचारधाराओं पर आधारित है )ज


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