डॉ ० - नर्स से मारपीट पर अस्पतालों को लड़ना होगा केस ,दो बड़े बिल पेश कर सकता है स्वास्थ्य विभाग मंत्रालय।









  • डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा पर 10 साल की सजा और 10 लाख तक के जुर्माने का है प्रावधान

  • नए कानून के अधीन आएंगे सभी अस्पताल कर्मचारी, ई-सिगरेट पर भी बिल लाने के आसार

  • इसके अलावा राज्यसभा में अटके हुए सरोगेसी बिल को भी हरी झंडी मिलने की उम्मीद डॉक्टरों के खिलाफ देश में बढ़ते हिंसा के मामलों को लेकर सरकार इसी शीत सत्र में बिल ला सकती है। इसके तहत डॉक्टर-नर्स से मारपीट होने पर अस्पताल प्रबंधन को कानूनी मुकदमा लड़ना होगा। इसके लिए 10 साल तक के कारावास और दो से 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। पीड़ित कर्मचारी से लिखित शिकायत लेने के बाद अस्पताल की ओर से मुकदमा दर्ज कराया जाएगा। साथ ही डीसीपी या एसएसपी स्तर के अधिकारी के स्तर पर मामले की जांच होगी। सोमवार से शुरू हो रहे शीत सत्र में इस बार स्वास्थ्य महकमे की तीन बड़े बिलों पर नजर है। डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा के अलावा, ई-सिगरेट और राज्यसभा में लंबित सरोगेसी बिल के पास होने की उम्मीद जताई जा रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार शीत सत्र में स्वास्थ्य स्वास्थ्य देखभाल सेवा कार्मिक और नैदानिक प्रतिष्ठान (हिंसा एवं संपत्ति क्षति निषेध) 2019 बिल इसी सत्र में लाया जाएगा। बीते दो सिंतबर को इसका मसौदा जारी कर आपत्ति और सुझाव भी मांगे गए थे। हालांकि इसमें बहुत बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। दोनों सदनों से पारित होने के बाद सभी राज्यों को इसे प्राथमिकता के साथ लागू करना होगा। उन्होंने बताया कि अस्पताल के किसी कर्मचारी से मारपीट या संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में संबंधित अस्पताल प्रबंधन की ओर से ही पुलिस को शिकायत दी जाएगी। साथ ही पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी की निगरानी में जांच के बाद मुकदमा दर्ज किया जाएगा।देश के चिकित्सकों को भी इस बिल के आने का इंतजार अस्पताल के सभी वर्ग के कर्मचारियों को सुरक्षा देने वाले इस बिल में चिकित्सा कर्मियों को गंभीर चोट पहुंचाने वाले व्यक्ति के लिए तीन से 10 साल के कारावास की सजा और दो से 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। साथ ही अस्पताल या क्लीनिक की संपत्ति को नुकसान पहुंचाने पर छह माह से 10 साल के कारावास की सजा और 50 हजार रुपये से पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। देश के चिकित्सकीय वर्ग को भी इस बिल के आने का इंतजार है। फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. सुमेध बताते हैं कि लंबे समय से चिकित्सीय वर्ग अस्पतालों में असुरक्षित महसूस कर रहा है। संसाधनों की कमी के कारण उसे तीमारदारों का शिकार होना पड़ता है। इस बिल के लिए देश के डॉक्टर लंबे समय से एक लड़ाई लड़ते आ रहे हैं जिसे अब विराम देने की जरूरत है। वहीं दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) आरडीए के सचिव डॉ. राजीव का कहना है कि पश्चिम बंगाल में दो डॉक्टरों से मारपीट के बाद एम्स के बैनर तले पूरे देश में विरोध बढ़ा था। सदन में बिल आने के बाद चिकित्सीय वर्ग के लिए सबसे बड़ी जीत होगी।