प्रात: स्मरणीय व कल्याणकारी अत्यंत शुभ मंत्रों और उनके अर्थों के साथ जयशंकर यादव की तरफ से सुभप्रभात।

 आपका दिन मंगलमय हो।_*


*_प्रातःकाल उठतेे ही अपने दोनों हाथों को आपस में रगड़े तत्पश्चात अपने हाथों का दर्शन करते हुए, निम्न श्लोक को दोहरायें_*


*कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।*


*करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्।।*


हाथ के अग्रभाग में लक्ष्मी, मध्य भाग में सरस्वती तथा हाथ के मूल भाग में भगवान नारायण निवास करते हैं। अतः प्रातःकाल अपने हाथों का दर्शन करते हुए अपने दिन को शुभ बनायें। 


*_बिस्तर छोड़ने के बाद धरती पर पैर रखने से पहले निम्न श्लोक को दोहराये_*


*समु्द्रवसने   देवि!     पर्वतस्तनमण्डिते।*


*विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पादस्पर्शं क्षमस्व मे।।*


हे! मातृभूमि! देवता स्वयं विष्णु (पतिरूप में) आपकी रक्षा करते हैं, मैं आपको नमस्कार करता हूं। हे सागर रूपी परिधानों (वस्त्रों) और पर्वत रूपी वक्षस्थल से शोभायमान धरती माता, मैं अपने चरणों से आपका स्पर्श कर रहा हूं, इस के लिए मुझे क्षमा कीजिए।


*_मानसिक सुधि मंत्र :-


*ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।


*यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यान्तर: शुचिः !


*अतिनिलघनश्यामं नलिनायतलोचनं !*


*स्मरामि पुण्डरीकाक्षं तेन स्नातो भवाम्यहम् !


*_गणेश जी का स्मरण_*


*प्रातः स्मरामि गणनाथमनाथबन्धुम् सिंदूरपूरपरिशोभितगण्डयुग्मं।*


*उद्दण्डविघ्नपरिखण्डनचण्डदण्डमाखण्डलादिसुरनायकवृन्दवंद्यम्।।*


अनाथों के बंधु, सिंदूर से शोभायमान दोनों गण्डस्थल वाले, प्रबल विघ्न का नाश करने में समर्थ एवं इंद्रादि देवों से नमस्कृत श्री गणेश का मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।


*_माँ दुर्गाजी का स्मरण_*


*प्रातः स्मरामि शरदिन्दुकरोज्ज्वलाभां सद्रत्नवन्मकरकुण्डलहारभूषाम्।*


*दिव्यायुधोर्जितसुनीलसहस्रहस्तां रक्तोत्पलाभचरणां भवतीं परेशां।।*


शरत्कालीन चन्द्रमा के समान उज्ज्वल आभावाली, उत्तम रत्नों से जटित मकरकुण्डलों तथा हारों से सुशोभित, दिव्यायुधों से दीप्त सुंदर नीले हजारों हाथों वाली, लाल कमल की आभायुक्त चारणों वाली भगवती दुर्गा देवी का मैं प्रातःकाल स्मरण करता हूँ।


*_त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण।_*


*ब्रह्मा मुरारीस्त्रिपुरांतकारी भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च।*


*गुरुश्च शुक्रः शनिराहुकेतवेः कुर्वन्तु सर्वे मम सु प्रभातम्।।*


ब्रह्मा, मुरारि (विष्णु) और त्रिपुर-नाशक शिव (अर्थात तीनों देवता) तथा सूर्य, चन्द्रमा, भूमिपुत्र (मंगल), बुध, बृहस्पति, शुक्र्र, शनि, राहु और केतु ये नवग्रह, सभी मेरे प्रभात को शुभ एवं मंगलमय करें।


*_ऋषि स्मरण_*


*भृगुर्वसिष्ठः क्रतुरङ्गिराश्च मनुः पुलत्स्यः पुलहश्च गौतमः।*


*रैभ्यो मरीचिश्चयवनश्च दक्षः कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।*


भृगु, वसिष्ठ, क्रतु, अंगिरा, मनु, पुलस्त्य, पुलह, गौतम, रैभ्य, मरीचि, च्वयन और दक्ष- ये समस्त मुनिगण मेरे प्रातःकाल को मंगलमय करें।


*सनत्कुमारः सनकः सनन्दनः सनातनोऽप्यासुरिपिङगलौ च।*


*सप्त  स्वराः सप्त रसातलानि कुर्वन्तु  सर्वे मम  सुप्रभातम्।।*


(ब्रह्मा के मानसपुत्र बाल ऋषि) सनतकुमार, सनक, सनन्दन और सनातन तथा (सांख्य-दर्शन के प्रर्वतक कपिल मुनि के शिष्य) आसुरि एवं छन्दों का ज्ञान कराने वाले मुनि पिंगल मेरे इस प्रभात को मंगलमय करें। साथ ही (नाद-ब्रह्म के विवर्तरूप षड्ज, ऋषभ, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद) ये सातों स्वर और (हमारी पृथ्वी से नीचे स्थित) सातों रसातल (अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल, और पाताल) मेरे लिए सुप्रभात करें।


*सप्तार्णवा: सप्त कुलाचलाश्च सप्तर्षयो द्वीपवनानि  सप्त।*


*भूरादिकृत्वा भुवनानि सप्त कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।*


सप्त समुद्र (अर्थात भूमण्डल के लवणाब्धि, इक्षुसागर, सुरार्णव, आज्यसागर, दधिसमुद्र, क्षीरसागर और स्वादुजल रूपी सातों सलिल-तत्व) सप्त पर्वत (महेन्द्र, मलय, सह्याद्रि, शुक्तिमान्, ऋक्षवान, विन्ध्य और पारियात्र), सप्त ऋषि (कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ, और विश्वामित्र), सातों द्वीप (जम्बू, प्लक्ष, शाल्मली, कुश, क्रौच, शाक, और पुष्कर), सातों वन (दण्डकारण्य, खण्डकारण्य, चम्पकारण्य, वेदारण्य, नैमिषारण्य, ब्रह्मारण्य और धर्मारण्य), भूलोक आदि सातों भूवन (भूः, भुवः, स्वः, महः, जनः, तपः, और सत्य) सभी मेरे प्रभात को मंगलमय करें। 


*पृथ्वी  सगन्धा  सरसास्तथापः स्पर्शी च वायुर्ज्वलितं च तेजः।*


*नभः सशब्दं महता सहैव कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्।।*


अपने गुणरूपी गंध से युक्त पृथ्वी, रस से युक्त जल, स्पर्श से युक्त वायु, ज्वलनशील तेज, तथा शब्द रूपी गुण से युक्त आकाश महत् तत्व बुद्धि के साथ मेरे प्रभात को मंगलमय करें अर्थात पांचों बुद्धि-तत्व कल्याण हों।


*प्रातः     स्मरणमेतद्यो   विदित्वादरतः    पठेत्।*


*पुण्यश्लोको नलो राजा पुण्यश्लोको जनार्दन:।*


*पुण्यश्लोका च वैदेही पुण्यश्लोको युधिष्ठिर: ।।


*अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनुमानश्च विभीषण:।*


*कृप: परशुरामश्च सप्तैते चिरजीविन:।।*


*स सम्यक्धर्मनिष्ठः स्यात् अखण्डं भारतं स्मरेत्।*


इन श्लोको का प्रातः स्मरण भली प्रकार से ज्ञान करके आदरपूर्वक पढ़ना चाहिए। ठीक-ठीक धर्म में निष्ठा रखकर  वसुदैव कुटुम्बकम् का स्मरण करना चाहिए।