शिव- नीलकंठ सत्यम शिवम सुंदरम सत्य ही सुंदर है सुंदर ही शिव है,
देवों के देव महादेव के जितने नाम हैं उतने ही उनके रूप भी हैं। भोलेनाथ के हर रूप की उपासना से वरदान मिलता है। भगवान शिव भक्तों से बहुत जल्दी प्रसन्न होते हैं। भक्त के मन की मधुर भावनाएं शिव को निहाल कर देती हैं और प्रसन्न होकर महादेव अपने भक्तों को मनचाहा वरदान देते हैं।
महादेव का हर रूप कल्याणकारी है। मान्यता है कि जिस पर शिव की कृपा हो जाती है उसे कोई बाधा नहीं सताती। भक्तों के लिए तो शिव का दरबार हमेशा ही खुला रहता है। ऐसे ही हैं देवों के देव महादेव। उनके हर स्वरूप की अलग ही महिमा है। आइए आपको बताते हैं महादेव एक प्रसिद्ध स्वरुप नीलकंठ की कहानी।
जब देवतागण एवं असुर पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन कर रहे थे, तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं और देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गर्मी से जलने लगे।
देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने भयंकर विष को अपने शंख में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव समाप्त कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलंकठ के नाम से
प्रसिद्ध हो गए।
जिस समय भगवान शिव विषपान कर रहे थे, उस समय विष की कुछ बूंदें नीचे गिर गईं। जिन्हें बिच्छू, सांप आदि जीवों और कुछ वनस्पतियों ने ग्रहण कर लिया। इसी विष के कारण वे विषैले हो गए। विष का प्रभाव समाप्त होने पर सभी देवगण भगवान शिव की जय-जयकार करने लगे।