कल टीवी पर समाचार में भी सुना और आज सुबह-सुबह अखबारों में भी पड़ा कि प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने लगभग 50 वर्ष पहले जिसमें इंदिरा गांधी द्वारा थोपी गई इमरजेंसी को देश का काला काल बतलाया काला।
माननीय मोदी जी के इन विचारों से मैं पूर्णतया सहमत हूं।
परंतु आज देश में इमरजेंसी पर मातम मनाने का समय नहीं है बल्कि समय है कि मणिपुर में जारी पिछले लगभग 1 माह से जनजातीय हिंसा जिसमें लगभग 100 से अधिक व्यक्ति मारे जा चुके हैं, उस पर नियंत्रण करने की आवश्यकता है। इमरजेंसी लगभग 50 साल पहले लगाई गई थी और इंदिरा गांधी को अपने इस कार्य के लिए देश की जनता ने सत्ता से बाहर करके दड भी दे दिया था। इमरजेंसी अप बीते दिनों की बात हो चुकी है लेकिन आवश्यकता अब इस बात की है कि वर्तमान में जो दुखद घटनाएं हो रही हैं उनको कैसे नियंत्रित किया जाए। प्रधानमंत्री की तरफ से मन की बात में इस बात का कोई जिकर न करना वास्तविक घट रही दुखद घटना की अनदेखी करना है। भारत के गृहमंत्री अमित शाह वहां पर 3 दिनों तक लगातार डेरा डाले हुए रहे परंतु पूर्ण रूप से असफल रहे और इंफाल में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के घरों में आग लगाया जाना, केंद्रीय राज्य मंत्री के घर में आग लगाया जाना यह प्रदर्शित करता है कि वहां के लोगों में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकलापों से कितना अधिक असंतोष है। संभवत प्रधानमंत्री ने इस अत्यंत निंदनीय घटना की ओर से ध्यान हटाने के लिए अपने मन की बात में मणिपुर की वर्तमान स्थित पर कोई प्रकाश नहीं डाला।
भारत का उत्तर पूर्व का लगभग पूरी तरह से ईसाई करण हो चुका है और आप वहां के एक भाग में जातीय हिंसा पर नियंत्रण न कर पाना सरकार की विफलता के साथ-साथ आगे चलकर देश की अखंडता के लिए भी खतरा बन सकती है।