. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की गुरुवार को आने वाली तिथि है
"देवशयनी एकादशी"
'महात्म्य'
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की देवशयनी एकादशी के नाम से जानें। इसे पद्मा औषधि, पद्मनाभ औषधि भी कहा जाता है। गृहस्थ आश्रम में रहने वालों के लिए चातुर्मास्य नियम एक ही दिन से निर्धारित हो जाते हैं। सन्यासियों का चातुर्मास्य गुरु पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है। देवशयनी एकादशी नाम से पता चलता है कि इस दिन से श्री हरि शयन चले थे। इस अवधि में श्री हरि पाताल के राजा बलि यहां चार मास निवास करते हैं। भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी, देवउठनी एकादशी, जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, के दिन पाताल लोक से अपने लोक छुपे हुए हैं। इसी दिन चातुर्मास्य नियम भी समाप्त हो जाते हैं।
चातुर्मास्य शब्द में सभी साधु-संतों का ध्यान जाता है, जो चार मास एक ही स्थान पर रहने वाले लोगों को धर्म से संबंधित ज्ञान प्रदान करते हैं, जो सत्य पर आधारित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। चातुर्मासस्य आषाढ़ शुक्ल एकादशी (इसे देवशयनी या हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठावनी या देवोत्थान एकादशी) तक होती है। सनातन धर्म में चातुर्मास्य की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, जिसका अनुकरण आज भी हमारे साधु-संत करते हैं।
प्रसिद्ध धर्म ग्रंथ- महाभारत आदि में चातुर्मास की महिमा का विशेष गान किया गया है। चातुर्मास असल में सन्यासियों द्वारा समाज को निर्देशित करने का समय है। आम आदमी चार महीनों में केवल सत्य ही बोलता है तो भी उसे अपने आंतरिक आध्यात्मिक प्रकाश दर्शन के लिए आना पड़ता है। नाम चर्चा और नित्य नाम स्मरण का भी ऐसा फल मिलता है।
चार मासों में कोई भी मंगल कार्य- जैसे विवाह, नवीन गृह प्रवेश आदि नहीं किया जाता है। ऐसा क्यों ? तो इसके पीछे सिर्फ यही कारण है कि आप पूरी तरह से ईश्वर की भक्ति में डूबे रहें, सिर्फ ईश्वर की पूजा-आरक्षण करें। देखा जाए तो नकली मौसम में जब शरीर में फूलों का मुकाबला करने की क्षमता होती है यानी कि शक्ति बेहद कम होती है, तब आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त करने के लिए व्रत करना, उपवास रखना और ईश्वर की आराधना करना बेहद कम होता है।
पुराणों के अनुसार एकादशी का व्रत जो भी भक्त सातों के मन में रखता है उसकी सभी भावनाएं पूरी होती हैं। साथ ही सभी पापों का नाश भी हो जाता है और मृत्यु के बाद स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। सिद्ध है कि इस ब्रह्माण्ड की कथा को पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान के बिना ही पुण्य फल प्राप्त होता है। इस व्रत में भगवान विष्णु और पीपल की पूजा करने का विधान है।
- 'पूजन विधि'
नारदपुराण के अनुसार, इस एकादशी के बाद भगवान विष्णु शयन के लिए निकलते हैं तो इस दिन उनकी पूजा भी खास होती है। इस दिन प्रातः विष्णु ब्रह्मा में ब्रह्मा स्नान आदि से निवृत्त भगवान का ध्यान करें। भगवान का ध्यान करने के बाद उनके व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी करें। पूजा घर में भगवान विष्णु की तस्वीर पर गंगाजल के छींटे और रोली-चावल से लेकर उनके तिलक करें और फूल चढ़ाएं। भगवान के सामने देसी घी का दीपक जलाना ना भूलें और जाने-अनजाने जो भी पाप हुए हैं उनकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करें और उनकी आरती भी उतारें।
इसके बाद द्वादशी तिथि को स्नान कराने के बाद भगवान का व्रत पूरा होने पर अभिषेक करें और ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें। ऐसा करने से आपका व्रत पूर्ण होता है। जो कोई भी व्रत नहीं करता है, उसके लिए भी शास्त्रों में बताया गया है कि वह इस दिन बैंगन, प्याज, चावल, बेसन से बनी चीजें, पान-सुपारी, लहसुन मांस-मदिरा आदि से व्रत कर सकता है। व्रत रखने वाले दशमी से ही विष्णु भगवान का ध्यान करें और भोग विलास से खुद को दूर रखें।
'कथा
सूर्यवंश में मांधाता नाम का एक राजा हुआ, जो सत्यवादी और महान प्रतापी था। उन्होंने अपने पेज का बेटे की गर्लफ्रेंड का पालन-पोषण किया था। उसकी सारी पेज धनधान्य से परिपूर्ण और सुखी थी। उसके राज्य में कभी भी अस्वाभाविकता नहीं थी।
एक बार राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई और अकाल पड़ गया। पेज अन्न की कमी का कारण अत्यधिक दु:खी हो गया। अन्न के न होने से राज्य में यज्ञादि भी बन्द हो गये। एक दिन पेज राजा के पास देखने लगे कि हे राजन! साड़ी पेज त्राहि-त्राहि पुकार रही है, क्योंकि संपूर्ण विश्व में सृष्टि का कारण वर्षा है। वर्षा के अभाव से असुरक्षा और असुरक्षा से पेज मर रही है। इसलिए हे राजन ! कोई ऐसा उपाय जिससे प्रजा का संकट दूर हो। राजा मांधाता ने कहा कि आप लोग ठीक कह रहे हैं, वर्षा से ही अन्न उत्पन्न होता है और आप लोग वर्षा न होने से अत्यधिक दु:खी हो गए हैं। मैं आप लोगों के दु:खों को याद करता हूँ। ऐसा खुला राजा कुछ सेना लेकर वन की ओर चला गया। वह कई ऋषियों के आश्रम में ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में यात्रा करते थे। वहां राजा ने घोड़े से उतारकर अंगिरा ऋषि की पूजा की।
मुनि ने राजा से कुशलक्षेम के अन्तिम आश्रम में आने का आशीर्वाद माँगा। राजा ने हाथ जोड़कर पवित्र भाव से कहा कि हे भगवान! सभी प्रकार से धर्म पालन करना भी मेरे राज्य में अपवित्र हो गया है। इससे पेज अत्यंत दुःखी है। राजा के पापों के प्रभाव से ही प्रजा पर अत्याचार होता है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है। जब मैं धर्म प्रस्ताव रखता हूँ तो मेरे राज्य में अधर्म कैसे पैदा हुआ? इसका कारण मुझे अभी तक नहीं चल सका। अब मैं आपके पास इसी सन्देह को निवृत्त के लिए आया हूँ। कृपया करके मेरे इस संदेश को दूर करो। साथ ही पेज के कष्ट को दूर करने का कोई उपाय बताएं। ऋषि को इतनी आश्चर्य की बात लगी कि हे राजन! आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पद्मा नाम की चतुर्थी का विधि निषेध व्रत करो। व्रत के प्रभाव से सुरक्षित राज्य में वर्षा होगी और पेज सुख प्राप्त होगा क्योंकि इस एकादशी का व्रत सभी सिद्धियों को देने वाला है और सभी उपद्रवियों को नाश करने वाला है। इस एकादशी का व्रत तुम लोग, सेवक और सेवक सहित करो।
मुनि के इस वचन को सुनकर राजा अपने नगर वापस आये और उन्होंने विधिपूर्वक पद्मा एकादशी का व्रत किया। उस व्रत के प्रभाव से वर्षा हुई और पेज को सुख मिला। अत: इस मास की एकादशी का व्रत सभी को करना चाहिए। यह व्रत लोक में भोग और परलोक में मुक्ति दिलाने वाला है। इस कथा को पढ़ने और सुनने से मनुष्य के सारे पाप नाश प्राप्त हो जाते हैं।
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🌹🌹जय श्री राधे राधे 🌹🌹
"श्रीजी की चरण सेवा"